कहते हैं हर किसी के आँसूओ,
का अपना एक मोल होता हैं।
यूँ हिं बेवजह ना बहावो इसे,
मोतीयों से भी अनमोल होता हैं।
मेरे जिन्दगी का दौर कहु या फिर,
बद्किस्मति का है सिलसिला।
एक नारी हैं अश्क से तरबतर
देख दृश्य मन हो उठा तिलमिला।
जिसे शास्त्रो में ही पुजा गया था,
वास्तविकता की धरातल पे नहीं।
कुण्ठित जग नोच रहे दामन को,
सम्मानित भाव हृदयतल पे नहीं।
अश्लीलता के मुर्तिमान बने सब,
नग्नशीलता के भावी प्रि-दर्शक हैं।
भूल गए उस नारी के आंचल को,
जो किसी लाल के पथ प्रदर्शक हैं।
माँ कहू या तू हैसिर्फ अबला नारी,
बैठी भुखी प्यासी बिलखता लाल।
पेट तो खाली कैसे दुध पिलाएगी ,
दुध की कीमत देने बैठा है दलाल।
गिद्ध तत्पर है तुम्हे नोच खाने को,
हे वैदेही देह का वस्त्र है तार-तार।
तन-स्तन हो रहीहैं रंग पारदर्शिता,
रखवाला बना जो वहीहै मक्कार।
अकिन्चन आयेगा राह न देख तू,
गौर-ए-गर्दिश में है तेरा आबरू।
उठ-जाग खड़ा हो शंखनाँद कर,
लक्ष्मी है तू!खुद से हो जा रुबरू।
अग्निपथ है तेरा समुल जीवनरथ,
भर हुंकार खोज आशा की डगर।
अब ना जलने दे खुद को आग से,
प्रहार कर गर्दन घुरता जोअजगर।
राजेश कुमार साहू (आर्मी फोर्स)
नन्हा शायर
ग्राम:-जोशी लमती