अपने डहर कमाबो खाबो
परदेस ले अपन जनम भूमि कोति आवत हे ।
कोरोना हा सब ला अपन माटी मा लावत हे ।।
गजब झन पैदल कतको दूरिहा ले आवत हे ।
रेंगत -रेंगत ओमन अब्बड़ दुख पावत हे ।।
धनवान मन हा जी गजब मजा उड़ावत हे ।
गरीब मनखे मन संसो- फिकर मा मर जावत हे ।।
बस रेलगाड़ी हा इंकर भाग मा नई हे संगी हो ।
देखव गा जानवर जइसे टरक मा भरावत हे ।।
कुछु नई मिलत हे मजदूर मन ला सहयोग ।
लांघन -भूखन वोमन ला रहे ला पड़ जावत हे ।।
दू बीता के पेट खातिर परदेस मा जाके ।
अपन करम ला मरो जियो ले ठठावत हे ।।
आवत खानी वोमन जऊन दुख पाहे तेला ।
सुसक- सुसक के सब ला बतावत हे ।।
सबो मन अपन छइहाँ भुइयाँ डहर आवत हे ।
नई जावन कभू परदेस कहिके कसम खावत हे।।
अपन गांव अपन राज मा रहिके कमाबो खाबो ।
मजदूर मन हा अइसन अब अपन मन ला बनावत हे ।।
ओम प्रकाश साहू अंकुर
सुरगी, राजनांदगांव