आवरण कथा
करम देवता को करते हैं नृत्य गीत समर्पित
करम डार पूजा पर्व छत्तीसगढ़ के जनजातीय समाज का बहुप्रचलित उत्सव है। कर्मा जनजातीय समाज की संस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है जो कि प्रकृति के प्रति पूर्णरूप से समर्पित है। इस त्योहार मंे एक विशेष प्रकार का नृत्य किया जाता है जिसे कर्मा नृत्य कहते हैं। यह उत्सव हिन्दू पंचाग के अनुसार भादो मास की एकादशी से शुरू होकर दशहरा तक छत्तीसगढ़ के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। कहीं सिर्फ एक दिन के लिए तो कहीं सात व नौ दिन तक उत्सव आयोजित किया जाता है। इस उत्सव की शुरूआत नवरात्र स्थापना के तीज के दिन श्रद्धालु कुंवारी लड़कियाँ अपने घर में गेहूँ-जौ (जंवारा) बोये रहते हैं। अपने सगे संबंधियों, पडोसियों को करमा के लिये निमंत्रण दिये रहते हैं। कर्मा उत्सव के दिन कंवारे लड़कियाँ-लड़के कुछ सयानों के साथ करम वृक्ष (कलमी वृक्ष) को निमंत्रण देते हैं। शाम को उसी करम वृक्ष (कलमी वृक्ष) की एक टहनी को काटते हैं, जिसे जमीन पर नही गिरने दिया जाता, हाथ में उठाकर रखा जाता है। वही से मांदर-मंजीरा बजाते और कर्मा गीत गाते हुए करम वृक्ष (कलमी वृक्ष) की टहनी को आँगन में लाकर गाड़ दिया जाता है।इस दिन कुंवारी लड़कियाँ करम देवता के लिए उपवास रखती हैं। फिर सभी व्रत रखी लड़़कियाँ अपने-अपने घर जवांरा लाकर करम वृक्ष (कलमी वृक्ष) की टहनी के सामने रखती हैं। गांव के लोगों और बैगा के आने के बाद करम देवता की पूजा की जाती है। करम देवता की कथा भी सुनाई जाती है। जिसका सारांश अच्छे कर्म का परिणाम अच्छा और बुरे कर्म का परिणाम बुरा होता है।
इसके बाद बैगा से खीरा का प्रसाद ग्रहण कर और पैर छूकर अपना व्रत तोड़ते हैं। पूजा करने के बाद सब अपने अपने घर जाकर भोजन करने चले जाते हैं। सभी सयानों और बैगा को महुंआ दारू (महुंआ के फूल का बना शराब) के साथ खाना पीना किया जाता है। उसके बाद सब फिर से अपने-अपने कर्मा नाचने-गाने और बजाने वाले समूह के साथ आकर करम देवता को अपनी नृत्य गीत समर्पित करते हैं।
फिर कर्मा गीत की शुरूआत अपने कुल देवी-देवता के साथ सभी देवी-देवता के सुमरनी कर्मा गीत (आवाहन) से शुरू होता है। जीवन के सभी पहलुओं, घटनाओं रिवाज का बहुत ही सुन्दर गीत के माध्यम से अपने भाव को व्यक्त किया जाता है। उस करम वृक्ष (कलमी वृक्ष) के चारों ओर घूम-घूमकर रात भर कर्मा गीत गा-गाकर नृत्य किया जाता है, और सुबह पास के ही किसी नदी में कर्मा गाते हुए करम डार और जंवारा को विसर्जित कर दिया जाता है। कर्मा नृत्य नई फसल आने की खुशी में लोग नाच-गाकर मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव है। वर्तमान समय में बॉलीवुड, हालीवुड और भोजपुरी फिल्मों के समय में हमारी आदिवासी प्राचीन संस्कृति विरासत पीछे छूटती जा रही है। सैकड़ों साल से हमारी संस्कृति की पहचान लोक नृत्य, गीत और परंपरा अब विलुप्त हो रहे हैं। कर्मा नृत्य के अलावा बार नृत्य, डंडा नृत्य, सैइला नृत्य, सुआ नृत्य, भोजली, और नवा खाई आदि।
सुमरनी (करमा) गीत
काहां ला हो दाउ साहेब तोरो जनम अरे लेहो घमसान
काहां ला कर ले बसो बासे हो रे
हाय हाय काहां ला कर ले बसो बासे हो रे
कोड़ेया मा हो दाउ साहेब तोरो जनम अरे लेहो घमसान
पेण्डरा ला करले बसो बासे हो रे
हाय हाय पेण्डरा मा करले बसो बासे हो रे
कोड़ेया मा हो दाउ साहेब तोरो जनम अरे लेहो घमसान
गांवन गांवन चैरा बनावै रे
हाय रे हाय गांवन गांवन चैरा बनावै रे
का चढ़ि आवै दाउ घमासान, का चढ़ि हिंगलाज हो रे
हाय रे हाय का चढ़ि हिंगलाज हो रे
घोर चढ़ि आवै दाउ घमासान, पालंगी चढ़ि हिंगलाज हो रे
हाय रे हाय पालंगी चढ़ि हिंगलाज हो रे
काहां उतरीगै दाउ घमसान काहां उतरीगै हिंगलाजै रे
हाय रे हाय काहां उतरीगै हिंगलाजै रे
चैउरा उतरीगै दाउ घमसान पीढुली उतरीगै हिंगलाजै रे
हाय रे हाय पीढुली उतरीगै हिंगलाजै रे
का दान लेवै लला घमसान का दान लेवै हिंगलाजै रे
हाय रे हाय का दान लेवै हिंगलाजै रे
लाल रकत लेवै लला घमसान नरियर लेवै हिंगलाजै रे
हाय रे हाय नरियर लेवै हिंगलाजै रे
बजै डमरूआ तोर महादेव बजिगया रे
डमडम बजत तीनों लोक मा जाय,
तीनों लोक के देबी देवता नाचत सरसती चले आय
डमरूआ तोर महादेव बजिगया रे
बजै डमरूआ तोर महादेव बजिगया रे
सुमरनी करमा गीत(भावार्थ)
हमार दाउ कोर्राम ठाकुर साहेब (पेण्ड्रा का राजा) का जन्म कोड़ेया राज (सरगुजा क्षेत्र) में हुआ और आकर पेण्ड्रा में निवास किये। आप ही ने गांव गांव में देवी चौरा का निर्माण कराया। आपके ठाकुर देव बाघ में सवार होकर आये और देवी माता (गांव गोसाइन) पालकी में विरामान होकर आई। ठाकुरदेव जी चौरा में उतरे और हिंगलाज माई मंदिर में विराजी। आपके ठाकुर देव जी लाल रक्त दान लिये और माता भवानी श्रीफल श्वेत दान लिए। फिर उनकी पूजा आराधना में महादेव का डमरू बजा, तीनों लोको से सभी देवी देवता आकर पेण्ड्रा में विराजमान हुए।
कर्मा गीत
कोन महिना बिजली चमाकय चिरइया नाचय लोरी लोरी रे
कोन महिना बिजली चमाकय चिरइया नाचय लोरी लोरी रे
कोन महिना पानी आवय कोन महिना पूरा
कोन महिना बिजली चमाकय चिरइया नाचय लोरी लोरी रे
जेठ महिना पानी आवय, सावन महिना पूरा
भादों महिना बिजली चमाकय चिरइया नाचय लोरी लोरी रे
भावार्थ
कौन से माह में बादल गरजकर बिजली चमकता है और कौन से माह में पक्षी (मोर) झूम-झूमकर नाचती है? कौन से माह से बरिश का मौसम आता है और कौन से माह में बाढ़ आती है? कौन से माह में बादल गरजकर बिजली चमकता है और कौन से माह में पक्षी (मोर) झूम-झूमकर नाचती है? ज्येष्ठ माह से बारिश का मौसम आता है और सावन माह में बाढ़ आता है। फिर बारिश के मौसम में बादल गरजकर बिजली चमकता है और पक्षी (मोर) झूम-झूमकर नाचती है?
कर्मा गीत
कोन उजारय धरती पताल रे, कोन उजारय रूख राई
राम जाने मया गा, कोन उजारय रूख राई
बैगा उजारय धरती पताल हो, आदम उजारय रूख राई
राम जाने मया गा आदम उजारय रूख राई
कोन सबोवय तीली उरिद रे, कोन सबोवय कारी कांगें
राम जाने मया गा कोन सबोवय कारी कांगें
बैगा सबोवय तीली उरिद रे, आदम सबोवय कारी कांगें
राम जाने मया गा आद सबोवय कारी कांगें
भावार्थ
भावार्थ कोन धरती पर जमीन और पानी का पता लगाता है और कौन जंगल के पेड़-पौधे को साफ कर गांव बसने लायक बनाता है। भगवान ही जाने वो कौन है जिससे आज इस धरती पर प्रेम भरा जीवन पल रहा है। सबसे पहले बैगा धरती और पानी की तलाश करता है, जनजातीय लोग जंगल के पेड़-पौधे को साफकर गांव बसने लायक बनाता है। कौन तिल हौर काला उड़द की खेती करता है और कौन काला कांग-मडि़या की खेती करता है। भगवान ही जाने जिससे आज इस धरती पर प्रेम भरा जीवन पल रहा है।
कर्मा गीत
केरा लगाएव चामखेरा गांव बसे गय
ए हो राम केरा लगोएव चामखेरा गांव बसे गये
कोन टोला बासय ओलखी अउ खोलकी
कोन टोला बासय चामखेरा गांव बसे गये
ए हो राम चामखेरा गांव बासे गये
खाल्हे टोला बासय ओलखी अउ खोलकी
ऊपर टोला चामखेरा गांव बसे गये
भावार्थ
मैने केला का पौधा लागाया। वो केला का पौधा इतना ज्यादा घना हो गया, कि चारों तरफ सैकड़ों की संख्या में छा गया। उसी केला के पौधा की तरह ही यह गांव भी बसा है जिसका नाम चमखेरा गांव कहा जाता है। कौन सा मोहल्ला सकरी बसाहट है और कौन सा मोहल्ला है जो चमखेरा गांव बसा हुआ है। नीचे वाला मोहल्ला सकरी बसाहट है और ऊपर वाला मोहल्ला है जो चमखेरा गांव बसा हुआ है।
कर्मा गीत
कोन महिना मिलय आमा अमली रे
कोन महिना मिलय दाना चारे
ए हो राम कोन महिना मिलय दाना चारे
जेठ महिना मिलय आमा अमली रे
दशहरा महिना मिलय दाना चारे
ए हो राम दशहरा महिना मिलय दाना चारे
भावार्थ
कौन से माह में आम और इमली का फल का मिलता है और कौन से माह में चार दाना अन्न मिलता है। ज्येष्ठ से माह में आम और इमली का फल का मिलता है और दशहरा के माह में चार दाना अन्न मिलता है।
आलेख
दयाराम भानू
सहायक शिक्षक,
कोलानपारा, पेंड्रा