**मानव जात बड़ी दुखदायी **
सरहदे इंसान की खिंची लकीरे है,
उस पार तू, इस पार मै।
भूमी तो एक थी दुनिया की,
मै भारत ,तू पाकिस्तान है।।
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एक चिड़िया भुलकर ,
पाकिस्तान चली गई।
आबो हवा वही थी,
जो हिन्दुस्तान की थी।।
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वैसे नदिया, वैसे पर्वत,
फल-फूल एक जैसा।
वही कटकटाती जंगल,
एक सी लहलहाती फसल।।
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गाँव भी देखा, शहर भी देखा,
सड़क ,चौराहे एक जैसा
ईट-पत्थर के मकान भी देखा
सब एक जैसा।।
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भेद कर न सकी चिड़िया,
अलग मुल्क की वासी है।
नभ, धरा सब मेरे अपने,
मै कहा पराई है।।
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वही एक मोर्चा पर मानव,
सैनिक बने खड़ा था।
झट पहचान लिया उसको
उस पे बंदूक तान दिया था।।
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यह परिंदा जासूस लगता,
मेल नही खाता बनावट।
रंग रूप देखो तो इसकी,
गैर मुल्क का लगता।।
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चिड़िया जान बचाकर कर भागी,
कुछ समझ न उसकों आयी।
है मानव, मानव भेद,
मानव ने सरहद बनाया,
मानव जात बड़ी दुखदायी
अब बात समझ चिड़िया की आयी।।
**सुखनन्दन कोल्हापुरे शरारत ** रायपुर (छ. ग.)