छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास मे लोककथा,लोकनृत्य, लोक संस्कृति का महत्वपूर्ण भूमिका है तो वही लोककला में हास्य रूपी पात्र का होना अति आवश्यक है।और यदि यह माना जाए तो इस पात्र के बिना कोई भी प्रस्तुति या प्रदर्शनअधूरा है,चाहे वह नाटय विधा हो,लोककला हो या फिर चटरंगी इन्द्र धनुष से सजी चलचित्र फिल्म की पटकथा, ये सारी सामजस्यता हास्य दर्पण से जुड़ी है।आज हम बात कर रहे है हास्य विधा से जुड़े संस्कारधानी की जान.पहचान और हास्य अभिनय का गुमान.. श्री सुदेश यादव जी से जिन्होंने अपनी हास्य विधा से अपना एक अलग मुकाम हासिल किया।जन्म स्थल -बालोद व कर्मस्थल राजनांदगांव से अपनी का आरंभ करने वाले इस कलाकार का जन्म 20 जुलाई सन् 1963 को हुआ।