छत्तीसगढ़ राज बने के बाद से छत्तीसगढ़ी पढ़इया, लिखइया, बोलइया, समझइया मन के बढ़ोतरी होइस हे। हाट बजार मं, लेन देन करत समय दुकान मं, स्टेशन मं गाड़ी आए के सूचना अतके भर नहीं दुकान के नांव घलाय छत्तीसगढ़ी मं लिखाए देखे बर मिले लग गए हे जेहर छत्तीसगढ़ी भाषा के महत्ता बतावत हे। खुशी के बात एहू हर आय के छत्तीसगढ़ी मं साहित्य लेखन जोरदार ढंग से होवत हे, आकाशवाणी-दूरदर्शन ले छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम मन के प्रसारण मं विविधता आइस हे त बढ़ोतरी भी होइस हे। अखबार, पत्र-पत्रिका मं छत्तीसगढ़ी ल जघा मिलत हे। तभो अभी शिक्षा के क्षेत्र मं, पाठ्यक्रम निर्धारण के क्षेत्र मं चिटिक पिछुवाए हन जेमा सुधार के जरूरत हे थोरकुन एकरो चर्चा कर लिन।
पहिली कक्षा ले बारहवीं तक के पाठ्यक्रम बनाए के जिम्मेदारी शैक्षिक अनुसंधान एवम प्रशिक्षण परिषद छत्तीसगढ़ द्वारा करे जाथे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986, शिक्षा बिन बोझ 1993, एन. सी.एफ 2005, बाल संरक्षण अधिकार, शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 , शैक्षिक क्षेत्र के परिवर्तन आदि कई ठन मुद्दा ल ध्यान मं राख के पाठ्यक्रम बनाए जाथे। ए तरह से ध्यान देवत समय छत्तीसगढ़ी भाषा ल सिकहोये, पढ़ोये बर, प्रासंगिक बनाए बर जब लइका मन के सामाजिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि ल ध्यान मं राखे बर परही तभे लइकन ल छत्तीसगढ़ी के स्वरूप ल समझे मं सुविधा मिलही। छत्तीसगढ़ी के लिपि तो देवनागरी च हर आय फेर गोड़ी, हल्बी, भतरी, कुडुक, सादरी, कवर्धाइ, सरगुजिहा, पूर्वी छत्तीसगढ़ी, मैदानी छत्तीसगढ़ी मं अंतर पाये जाथे। पांचवीं कक्षा तक क्षेत्रीय छत्तीसगढ़ी मं लइकन ल पढ़ाये जावय। अभी पाठ्यक्रम मं लगभग 12.72 प्रतिशत ही छत्तीसगढ़ी शामिल हे, छत्तीसगढ़ी भाषा मं भूगोल, इतिहास, सामाजिक विज्ञान असन विषय के किताब लिखे जाही त अवइया दिन मं पाठ्क्रम मं छत्तीसगढ़ी 72.12 प्रतिशत हो जाही। भाषा हर परिवर्तनशील सामाजिक सम्पत्ति आय जेमा बढ़ोतरी करे के विचार करत समय हिंदी के विकास प्रक्रिया ल सुरता करिन त खड़ी बोली मेरठ के आस पास के बोली आय जेमा बृज भाषा, अवधी, बुंदेली, संस्कृत, उर्दू आदि भाषा के शब्द मिंझार के हिंदी बनिस फेर शब्द विन्यास, वाक्य विन्यास, व्याकरण अलग बनिस। ठीक अइसने छत्तीसगढ़ी मं एकर उपबोली मन के शब्द मन ल अपना के भी ओकर व्याकरण के निर्धारण करना हे, कठिन काम हे अउ नइ भी हे काबर के सबो उपबोली के लिंग, वचन, कारक, काल विधान तो एके असन हे। दूसर जरूरी बात के आने भाषा के चलागत अउ पारिभाषिक शब्द मन ल जस के तस अपनाना परही तभे शब्दकोश मं बढ़ोतरी होही, जइसे रेडियो, थर्मामीटर, क्रोसीन, मोबाइल, रोज, बाल्टी अउ बहुत अकन शब्द हे विशेषकर कानूनी, चिकित्सा विज्ञान, तकनीकी शब्द मन ल तो अपनाए च बर परही। जरूरी बात एहू हर आय के छत्तीसगढ़ी शब्द बनाए बर शब्द मन के टोर भांज करे ले बांचे बर परही नहीं त अर्थ के अनर्थ होवत बेर नइ लगय जइसे ….
प्रश्न …परसन
प्रदेश ….परदेस
प्रकृति …परकीरति
मूल शब्द ल लिखे ले भाषा के सुघराई संग अर्थ के महत्ता घलाय बाढ़थे। आजकल शिक्षा के प्रचार प्रसार के चलते लोगन के उच्चारण क्षमता बढ़ गए हे छाता ल साता कहइया बहुत कम मनसे रहि गए हें। छत्तीसगढ़ी ल मनसे के जीवन के मूलधारा ले जोरे बर परही, अपभ्रंश ल छोड़े बर परही, भाषा हर बोहावत पानी के धार कहाथे त पानी के बहाव मं कचरा कूटा अपने अपन तिरियावत जाही, फरी पानी तभे पाबो जब पानी हर एक जघा जमे झन रहय, बोहावत रहय। मानक छत्तीसगढ़ी बने मं समय लगही, लोक व्यवहार मं तो छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण होये शुरू हो गए हे, आवागमन के सुविधा हर ए काम ल भी सुविधाजनक बना देहे हे फेर लिखित रूप मं अवइया दिन मं छत्तीसगढ़ी के मानक रूप ल स्थापित करे मं सबले बड़े योगदान लेखक मनके होही। थोरकुन पूर्वाग्रह ल छोड़े बर परही, दुराग्रह ले दुरिहाये बर परही। बहुत जरूरी बात के कविता हर भाषा के सिंगार करथे, कुंअर करेजा के भाव ल लिखथे सोला आना सही बात आय कोनो तरह के उजिर-आपत्ति नइये तभो गुने के बात एहर आय के सोच-विचार, चिंतन-मनन, विषय विश्लेषण, संस्कार-संस्कृति, इतिहास-राजनीति, सामाजिक-आर्थिक सरोकार के वर्णन बर तो गद्य हर ही सजोर-सामरथ विधा आय त भाषा ल आने भाषा के बरोबरी मं ठाड़ तो गद्य हर ही करही।
सोशल मीडिया मं जेन छत्तीसगढ़ी के उपयोग आज होये बर शुरू हो गए हे, धीरे बाने उही हर अवइया दिन के छत्तीसगढ़ी के रूप आय, सरकारी काम काज भी एक दिन इही भाषा मं होही। आज लोगन आलोचना जरूर करत हें के छत्तीसगढ़ी मं हिंदी मिंझरत जात हे जेकर से छत्तीसगढ़ी भाषा के मूल रूप नंदावत जात हे, अवइया दिन के परिष्कृत छत्तीसगढ़ी ल पढ़-सुन के ओहूमन गरब-गुमान करबे च करहीं। ठीक उही तरह जइसे भारतेंदु युग के हिंदी, छायावाद युग के हिंदी अउ आज के हिंदी भाषा के अंतर ल मनसे स्वीकार करत हें।
लेखिका
सरला शर्मा