बिजली चमकै जोर ले, सावन भादो घात।
बरसै बरसा झूम के, झड़ी करय दिनरात।~1
झड़ी करय दिनरात तब, हरियर खेती खार।
रदरद-रदरद पानी गिरै, अमरित अमित अपार।~2
अमरित अमित अपार हे, जीव जगत के सार।
बिन बरसा बस बुजबुजा, धरती बिकट बँबार।~3
धरती बिकट बँबार ले, जरै जीव के खेल।
मुचमुच हाँसय जीवमन, गिरथे पानी पेल।~4
गिरथे पानी पेल ता, सबके मन हरसाय।
तरिया नरवा नल कुआँ, बइहा बन बउराय।~5
बइहा बन बउराय सब, तन-मन होय मँजूर।
आये ले चउमास के, भागय आलस फूर।~6
भागय आलस फूर जी, होवँय सबो सचेत।
मुँहीं टार ला बाँधथें, खेती खुर्रा खेत। ~7
खेती खुर्रा खेत मा, खुरपी खुरमी खास।
खपगे खुरहट खोचका , खलबल ले चउमास।~8
खलबल ले चउमास हे, बरसत खुशी बरात।
चहकय चिरई चिंगरी, सावन भादो घात।~9
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कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9200252055