सृष्टि की अनमोल धरोहर होती हैं,,(माँ) "अतंरिक्ष में जिसका अंत ना हो वो आसमां है।।। और पृथ्वी पर जिसका अंत ना हो वो माँ .....हैं। ईश्वर की उत्कृष्ट रचना,, सभी माँ को समर्पित.. मेरी यह कविता..... (ये मेरी माँ का नाम है) तेज बिजली की तडक से.... अपने आँचल छुपाती हैं.... हवा की तेज, सर सर से..... जाने क्यूँ सहम जाती हैं.... सारी रात जागकर भी वो.. पलकें ना झपकाती हैं.... दर्दे यदि मुझको हो तो.... एहसास वो कर जाती हैं..... अच्छे बुरे की समझ को.... हमको वो समझाती है.... गर मै भूखा ही सो जाऊ.... खुद ना अन्न उठाती है.. ठोकर लग जाए मुझे तो.... दर्दे से वो कहराती हैं... ब्रम्हाण्ड के तीनों लोको में.... जिसका अव्वल धाम हैं.... दुर्गा, काली माँ सरस्वती..... ये मेरी माँ का नाम हैं..... चरणों में चारों धाम है.... आकल्पन/लेखन रवि रंगारी(शिक्षक) एनपीएस (पेण्ड्री) राजनांदगांव मो.9302675768
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