परिवार की हालत नाजुक
नत्थू दादा ने राजनांदगांव को सिनेमा के क्षेत्र
में विशेष पहचान दी, तथा बालीवुड में अपना विशेष स्थान भी बनाया था। आज वे नहीं रहे पर उनकी कमी कहीं न कहीं नजर आती है।राजनांदगांव हमेशा ऐसी प्रतिभा को नमन करता रहेगा।
कैरियर की शुरूआत
सन 1969 की है तब भिलाई में फ्री स्टाइल कुश्ती में नत्थू
दादा अपने साथी के कहने पर दारा सिंह को देखने गए थे। विपक्षी पहलवान को हराने के
बाद दारा सिंह लोगों से हाथ मिलाने लगे। तभी उनकी नजर नत्थू दादा पर पड़ी। उन्होंने
नत्थू को एक हाथ से उठा लिया। उनका एक हाथ दर्शकों का अभिवादन स्वीकारते हुए हवा में लहरा रहा
था तो दूसरे पर नत्थू दादा लटके हुए थे। नत्थू दादा की सांसें अटकी हुई थीं कि
कहीं दारा सिंह उन्हें हवा में न उछाल दें, पर एक्शन हीरो
ने उन्हें गले से लगा लिया। दारा सिंह ने नत्थू को अपने साथ मुंबई चलने को कहा तो
वे तुरंत तैयार हो गए। अगली सुबह वे दारा सिंह के बांद्रा वाले घर में थे।
मुंबई पहुंचने के दो दिनों बाद दारा सिंह ने
नत्थू दादा को शो मैन राज कपूर से मिलवाया। राजकपूर मेरा नाम जोकर बनाने की योजना
बनाने में लगे थे। नत्थू दादा को देखकर वे खुश हो गए क्योंकि फिल्म में उन्हें
छोटे कद के आदमी की जरूरत थी। नत्थू दादा की किस्मत खुल गई अब वे दारा सिंह के घर
से राज कपूर के चेंबूर वाले बंगले के मेहमान हो गए। इस तरह मेरा नाम जोकर नत्थू
दादा की पहली फिल्म रही जिसमें उन्हें छोटा जोकर बनाया गया था। इसके बाद दादा ने
राजकपूर की पांच फिल्मों में जोकर की भूमिका निभाई। उन्होंने मेरा नाम जोकर के अलावा
कस्मे वादे शक्ति राम बलराम, उड़न छू, खोटे सिक्के,
टैक्सी
चोर, अनजाने जैसी फिल्मों में काम किया था।
दुर्घटना का शिकार
नत्थू दादा ने बताया था कि 1982
में आई फिल्म धर्मकांटा के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण वे बुरी तरह
घायल हो गए थे। फिल्म के एक सीन में अमजद खान को उन्हें फेंकना था और दूसरे कलाकार
को पकड़ना था लेकिन वे ऊंचाई से गिर गए और
जख्मी हो गए। इसके बाद वे वापस अपने गांव आ गए। दोबारा मुंबई जाने की कोशिश की
लेकिन घर वालों ने नहीं जाने दिया और शादी करा दी। नत्थू दादा ने अपने संरक्षक रहे
दारा सिंह के साथ तीन फिल्मों में काम किया है। मेरा नाम जोकर के अलावा दूसरी
फिल्म पंजाबी में बनी दुख भंजन तेरा नाम और तीसरी का नाम अब नत्थू
दादा को याद नहीं है।
उनके अनुभवों में
मेरा नाम जोकर की शूटिंग के दौरान दारा सिंह ने
उनके नाम के आगे दादा जोड़ा। नत्थू दादा बताते हैं कि दारा सिंह खुशमिजाज थे। हमेशा
हंसते रहते थे। जब वे उनके घर पर रुके तो उन्हें कहीं से नहीं लगा कि किसी स्टार
के घर पर हैं। दारा सिंह का तब बालीवुड में खासा रुतबा था। उनके साथ हमेशा काजू-
किशमिश और बादाम के पैकेट लिए दो व्यक्ति रहते थे, दारा सिंह हर
आधे घंटे में इस काजू-किशमिश को निकालकर खाते थे।
बदहाली जीवन जीने मजबूर
राजकपूर के साथ मेरा नाम जोकर से फिल्मी करिअर
शुरू करने वाले दो फुट के नत्थू दादा कई महीनों से बीमार थे। उन का पूरा नाम नत्थू
रामटेके था और वे बदहाली में पत्नी के सहारे जिंदगी बिता रहे थे। मुम्बई की
चमक-दमक से बहुत दूर बुढ़ापे में वे अपने गांव में ही रहे। आठ साल तक चपरासी के रूप
में काम करने वाली पत्नी चंद्रकला की नौकरी छूट जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे।150 से सौ ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके
70 वर्ष के बौने कलाकार नत्थू दादा का छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव के पास
अपने गांव रामपुर में निधन हो गया।
संपादक की डेस्क से
गोविन्द साहू (साव)
लोक कला दर्पण
contact- 9981098720
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