गनपति वंदना
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बुद्धि के देवैय्या, कारज के
बनैय्या...
सुमिरन तुमला हो... देव... गनपति महराज...
रखिहौ तुमन हो लाज...
जस के रद्दा होवय... दुख ले कोनो झन रोवय...
बिगड़े ल बनाहू... अंजोर म चलाहू
सुघ्घर होवय सबके काज...
दया धरम म डूबे रहन...बने बने सबे ल कहन...
सबला होवय नाज...
मिलके आरती उतारन...चरन तोरे पखारन...
एके सुर म सजे सबके साज...
सबके हर हू बिपत ल...पाबोन हमन सुमत ल
झन गिरय कोनो म गाज...
असीस तुंहरे हो पावन...निस दिन गुन ल गावन...
देवव सुख समृद्धि के राज...
रखिहौ हमरो हो लाज...
डॉ. दीनदयाल साहू
साहित्यकार व संपादक
पता-प्लाट न. 429 सड़क न.-07 माडल टाऊन
नेहरु नगर भिलाई मो.-97523-61865
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