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"सावन के रिमझिम फोहार,
हरियर हमर हरेली तिहार।"
हमर छत्तीसगढ़ राज मा बछर के पहिलाँवत तिहार हरेली ला माने गे हे। खेती किसानी के गढ़ , धान के कटोरा छत्तीसगढ़ मा माटी ले जुरे ये हरेली तिहार ला लोक परब के बड़का दरजा मिले हे। सावन के पबरित महीना मा भक्ति, अराधना, आस्था अउ बिसवास के झड़ी लगथे। तीज-तिहार के रेलम-पेल हो जाथे। इही सावन महीना मा छत्तीसगढ़ के पहिलाँवत तिहार हरेली तिहार ला मनाय जाथे। ये हरियर -हरियर हरेली तिहार हा भुँइयाँ के चारों खूँट बगरे सँवरे हरियर-हरियर हरियाली के संग खुसहाली के तिहार हरय। ये हरेली तिहार हा जतका खुसी, उछाह, नवा उरजा अउ नवा जोस के तिहार हरय वोतका आस्था, बिसवास, परंपरा अउ अंधबिसवास के तिहार घलाव हरय। वइसे तिहार हा मूल रुप मा मनखे के खुसी अउ उछाह ला देखाय के माधियम हरय।
जेठ के जउँहर घाम ले सबो परानी के तन अउ मन हा झँउहाय रथे, बुझाय परे रथे। बरसा के चउमासा लगे ले असाढ़ अउ सावन समाथे। असाढ़ -सावन के जुड़ पुरवाही अउ फुर-फुर पानी के फोहार हा जेठ के जरे बइठे परानी मन ला नवा जिनगानी देथे। धरती अउ धरती के जम्मों परानी मन के पियास अउ थकास ला असाढ़ सावन हा बुझाथे। चारों खूँट पानीच पानी भर जाथे, भुँइयाँ हरिया जाथे। आँखी मा हरियर रंग के चसमा चढ़गे तइसे लागथे। सबले जादा सावन के अगोरा हमर माटी के मितान अनदाता किसान ला रथे। बिन पानी अबिरथा जिनगानी। हमर जिनगी के रखवार सावन हा होथे। सावन के संग मा सरी खुशी के रंग भरे रथे।
सावन के सबले पबरित महीना मा जब धरती दाई के अँचरा हा हरियाथे ता सावन अमावसिया के दिन सुग्घर हरेली तिहार ला मनाथन। ए हरेली तिहार हा पुरखा के परमपरा ला पोठ करे के खाँटी देशी तिहार हरय। असाढ़ अउ सावन के आये ले जाँगर टोर कमइया किसान भाई मन बर खाय पीये के घलाव फुरसत नइ मिलय, बेरा कुबेरा खवई-पियई चलथे। सावन के अधियात ले खेती किसानी के बुता, बोवँई-सियासी हा सिरा जाथे या फेर सिराय ला धर लेथे। अपन जाँगर अउ नाँगर संग सहमत देवइया सहजोगी मन के मान अउ आदर करे बर ये तिहार ला सिरजाय गे हावय अइसे लागथे। किसानी मा काम अवइया जम्मों अउजार मन के संगे संग भँइसा, बइला अउ गाय-गरुवा मन ला धो माँज के, नहा धोवा के पूजा पाठ करे के परमपरा हरेली के दिन हावय। ऊँच अउ सुख्खा जघा मा जम्मों किसानी के हथियार ला सुग्घर धो पोंछ सफा करके, गुलाल, बंदन, चंदन-चोवा लगा ,नरियर फोर के सदा सहायता करहू कहीके आसीस माँगे जाथे। हुम धूप, अगरबत्ती जलाके गुरहा चीला चघाके चाँउर पिसान के हाँथा दे जाथे। किसान के किसानी के सहजोगी पसुधन मन के मान गउन इही दिन सरद्धा ले होथे। अपन पसुधन ला बिहनिया ले नहा धोवा के कोठा मा बाँध दे जाथे। राउत भाई मन जंगल ले जरी बुटी के रुप मा बगरंडा, कांदा अउ नून के खिचरी माल-मत्ता मन ला खवाथे। चउमास मा पानी ले होवइया बेमारी ले बचाय खातिर मनखे अउ माल-मत्ता बर दसमूल कांदा, बन गोंदली अउ गहूँ पिसान के लोंदी संग खम्हार पान अउ अण्डा पान, बगरंडा अउ नून संग खवाय जाथे। एखर ले बछर भर रोग माँदी झन सँचरय मवेसी मन ला अइसन सोंचे जाथे। खिचरी खवाके चोबीस घंटा कोठा मा बाँध के राखे जाथे। किसान के हाँथ पाँव इही मन हा होथे तभे एखर सुरक्छा सबले आगू करे के बेवसथा ये पहिली तिहार मा कर दे जाथे।
हरियर-हरियर हरेली तिहार के रंग छत्तीसगढ़ के रग रग मा रग रग ले बसे हावय। हमर गँवई गाँव मा हरेली तिहार के आतमा हा बसे हावय। गाँव-गँवई मा रहइया सिधवा खेती-किसानी करइया, जाँगर टोर कमइया किसान भाई मन बर ये तिहार हा बड़ हाँसी-खुसी, उछाह, सरद्धा अउ बिसवास जताय के परब हरय। ए दिन दिनभर कोनो दूसर कारज करे के मनाही रथे, सिरिफ हाँसी-खुसी ले दिनभर तिहार मनाय के उदिम होथे। जम्मों जीव जगत के अन पानी के अधार किसानी हा हरय। ये तिहार किसानीच के हरय। ये दिन किसान किसानी के सरी समान नाँगर, बक्खर, कोपर, रापा, कुदारी, चतवार, हँसिया, टँगिया, बसुला, बिंधना, साबर, पटासी, काँवर अउ वो सबो जीनिस जौन किसानी के काम अवइया जीनिस होथे तेन मन ला हियाव करके मान-गउन करे जाथे। ये दिन घर मा गुर अउ चाँउर पिसान के चीला, चौसेला, बोबरा, खीर तसमई, दूधफरा, भजिया, सोंहारी अउ आनी-बानी के रोठी-पीठा बनथे। ये दिन कोठा,गोर्रा मन मा कुकरी अउ बोकरा के बलि दे के घलाव चलागत हावय। अइसन सरी उदिम कोनो प्रकार के अलहन ले बाँचे के उपाय पुरखा मन हा मानत आवत हें।
हरेली मा पूजा पाठ के पाछू लइकामन बर बाँस के गेंड़ी खापे जाथे। एखरे सेती ये तिहार मा लइकामन सबले जादा खुश रहिथें। गेंड़ी चढ़हे बर लइकामन हा तालाबेली देवत रथें। वइसे गेंड़ी के चलन हा सावन भादो के चिखला ले बाँचे बर बनाय गीस फेर अब ये हा लइकामन के सबले बढ़िया सँउख अउ खेल के जीनिस हो गीस। नवा बछर के पहिली तिहार होय ले हरेली के दिन दिनभर रंग-रंग खेल होथे। लइका, जवान अउ सियान सब झन उछाह ले भरे रथें। गेंड़ी दँउड़, नरियर फेंक, गिल्ली डंड़ा, कबड्डी, खो-खो, फुगड़ी, कुश्ती, खुरसी दँउड़ , डोरी दँउड़, बोरा दँउड़ जइसन खेल बाजी लगाके खेले जाथे। संगे-संग लोहार भाई मन घर के मुँहाटी मा खीला ठेंसके लीम के डारा खोंचथें। केवट भाई मन घरो-घर सौंखी मा लइकामन ला ढाँकथें। अलहन ले बचे के उदिम के रुप मा ये सब हा पुरखा के चलाय हरय। एखर बदला मा ये यन ला चाँउर, दार, दार, साग-भाजी अउ उचित के ईनाम मिलथे। ये सब तिहार के खुशहाली हरय।
हरेली के दिन हमर गँवई-गाँव मा सबले पहिली बड़े फजर ले गाँव के देवी-देवता मन के सुमरनी करे जाथे। ठाकुर देवता, महामाई, सीतला दाई मन के मान-मनउव्ल, पूजा-पाठ गाँव के बईगा बबा हा बिधि-बिधान ले करथे। गाँव भर के जान माल ला कोनो प्रकार के अलहन, रोग-माँदी अउ परसानी ले बचाय खातिर अइसन करे के प्रथा हावय। सावन के महीना मा हरेली आय के आगू कोनो प्रकार के अलहन ले अपन घर परवार ला बाचाय खातिर घर के कोठ मा , कोठा मा गोबर ले हाथ के अँगरी मन ले सोज-सोज डाँड़ खींचे जाथे। ये सोज डाँड़ खींचई हा एक प्रकार के सुरक्छा घेरा माने जाथे। गोबर ले सोज डाँड़ के सँग मनखे, गाय, बइला, शेर अउ आनी बानी के परतीक चिन्हा ला कोठ मन मा लिखे जाथे। अइसन घर परवार अउ पसुधन ला कोनो नसकानी ले बचाय के उदिम हरय।
गवँई गाँव के नस-नस मा लहू-रकत बरोबर समाय ये हरेली तिहार हा आस्था अउ बिसवास के संगे-संग अंधबिसवास के घलो चिन्हउटा हरय। ये तिहार संग जतका मनखे के आस्था अउ बिसवास जुरे हे ओतके टोटका, जादू-टोना अउ, तंतर-मंतर के अंधबिसवास घलाव भरे परे हावय। सावन अमावसिया, भादो अमावसिया, कुवाँर अमावसिया अउ कारतिक अमावसिया के दिन हा जंदर-मंतर अउ तंतर बर बड़ शुभ माने गे हे। इही मा सावन अमावसिया (हरेली) के दिन हा सबले सिद्ध, सुफल अउ शुभफलदायी माने जाथे। सावन अमावसिया के रतिहा हा अपन सिद्ध अउ उपासना बर सबले जादा महत्तम होथे। हरेली के दिन हाँसी-खुशी अउ खेल तमाशा मा बीत जाथे फेर रतिहा बेरा जंतर-मंतर के अनैतिक खेल हा शुरु होथे। हरेली के रतिहा हा बइद, बइगा, जदुहा-टोनहा, टोनही जइसन साधना करइया मन बर बरदानी रतिहा माने गे हावय। इही दिन कई ठन गवँई-गाँव मा नगमत साधना घलो करे जाथे जौन हा साँप के काटे ले संबंधित होथे। अइसन गोठ के कोनो अधार नइ रहय। जिहाँ असिक्छा अउ अग्यान के अँधियारी घपटे रथे उहें अंधबिसवास के के नार हा छलछलथे। गयान के अँजोर ले भरम अउ अंधबिसवास के अँधियारी पल्ला भागथे।
हरेली हा धरती मा हरियर-हरियर बगरे हरियाली अउ खुशहाली के तिहार हरय। अपन हरियर खेती-खार , धनहा-डोली मा धान के हरियर नान्हे बिरवा ला देख के मन हा हरसाथे। परकीति मा सँचरे हरियर रंग हा सबके मन मा हरियाली भर देथे। इही हरियर रंग के सुघराई के सेती ये तिहार के नाँव हरेली परे हावय। हमर खेती-किसानी वाल राज मा हरेली के परब हा जन-जन के जिनगी मा रचे-सबे हावय एखर सेती हरेली हा लोक परब के दर्जा पाय हे। गाँव-गवँई के आत्मा मा हरेली बसे हावय। फेर आज हरेली के तिहार हा सुन्ना अउ उख्खड़ परत जावत हे। हरेली खुशहाली ले जादा मंद-मउँहा पी खा के झगरा मताय के तिहार होवत हावय। गाँव-गवँई मा येला अब छोटे होरी के नाँव ले सोरियाथें। नंदावत हरेली के परंपरा ला आज फेर पोठ करे के जरुरत हावय। आधुनिकता के भेंट चढ़त हमर आस्था अउ बिसवास ला बचाय के उदिम अवइया नवा पीढ़ी बर हमन ला जुरमिल के करना चाही। बछर के पहिलाँवत तिहार ला हाँसी-खुशी अउ बड़ उछाह ले मनाना चाही। खुशहाली के हरियाली मा अग्यान अउ अंधबिसवास के होरी जला देना चाही। अंधबिसवास अउ भरम हा समाज बर अमरबेल जइसन होथे। हरेली तिहार हरियर-हरियर , सुग्घर-सुग्घर रीति-नीति ला पुरखा के परंपरा मान के येला पोठ करे के सयी उदिम हमर समाज ला करना चाही। हरेली तिहार कखरो सुवारथ साधे के , कोनो के अहित करे के, कोनो ला दुख-पीरा दे के तिहार बिल्कुल नो हे। टोनहा-टोनही, ठुआ-टोटका अउ जादू-मंतर मन हा सिरिफ मन के भरम भर आय अउ कुछु नो हे। असिक्छा, अग्यान अउ ओखर ले उपजे अंधबिसवास हा कोनो देश अउ समाज बर हितवा नइच हो सकय। हरेली ला इही संदेश देथे के हाँसी-खुशी मन मा हे ता सरी दिन हरियाली होथे। मनखे के मन भितरी गयान के हरियाली हा असल हरेली कहाथे। अंतस के हरेली हा जिनगी ला जगमगाथे।
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कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा छत्तीसगढ़
संपर्क~9200252055
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1 टिप्पणियां
धन्यवाद लोककला दर्पण परिवार।
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