लोक जगत
राजिम के जमीदारों के पूर्वज व वंशज
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यद्यपि छ.ग. के अनेक विद्वानों कलाकार एवं
साहित्यकार कला संस्कृति एवं साहित्य के प्रति समर्पित रहें है जिनके फलस्वरूप आज
लोक कला और साहित्य जगत का विस्तार देश प्रदेश व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना
स्थान व पहचान बना चुका है ऐसे ही छत्तीसगढ़ प्रयाग राज राजिम के प्रसिद्धि के अनेक
कारण विद्यमान है जैसे यहां तीनों नदियों सोंढूर, पैरी और महानदी
का संगम होने के साथ साथ ऐतिहासिक मंदिरों का स्थापत्य ऋषि-मुनियों का तप स्थली
आश्रम एवं माघ महीने में होने वाली पुन्नी मेले का आयोजन तर्पण श्राद्ध स्थल काफी
विशेषता रखती है। त्रिवेणी संगम के अलावा भगवान राजीव लोचन, कुलेश्वरनाथ,
राजिम
माता मंदिर, लोमश ऋषि आश्रम, भागवत आश्रम, ब्रम्ह्चर्य
आश्रम, तप व साधना स्थली एवं पर्व विशेष में धार्मिक अनुष्ठान, सांस्कृतिक
आयोजन, साहित्य गोष्ठी और नए राज्य गठन पश्चात तीनों जिलों रायपुर-धमतरी और
गरियाबंद का मिलन स्थल होने के कारण यहां कि प्रसिध्दि और बड़ जाती है। ख्याति
अर्जन के अनेक कारण के अलावा यहां के जमींदार महाडिक परिवार का योगदान भी और
जुड़ जाता है जिनके महत्वपूर्ण प्रयासों के परिणामस्वरूप सांस्कृतिक चेतना, साहित्यिक
उर्जा और धार्मिक साधना को नया आयाम मिला है।
छत्तीसगढ़ के कवि, साहित्यकार व
कलाकारों द्वारा योगदान पराधीन एवं स्वतंत्रता प्राप्ति काल से ही छ.ग. में
साहित्यिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक क्षेत्र के उत्थान व विकास के लिए अनेक
विद्वानों, कवियों, लेखकों, विचारकों
व मनीषियों एवं कलाकारों के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता, जिसमें
प्रमुख साहित्यकार पंडित सुन्दर लाल शर्मा, संत पवन दीवान,
कृष्णारंजन
महाराज, संत भूनेश्वरी शरण महाराज, परेवा वाले भगत
बाबा, महंत मधुरगिरी, प्यारे लाल गुप्ता, हरि
ठाकुर, नारायण लाल परमार, बंशी पाण्डेय, डा.भोलानाथ
तिवारी, डा.कान्तिकुमार जैन, लोचन प्रसाद पाण्डेय, कपिलनाथ
कश्यप, पंडित विद्या भूषण मिश्र, डा.पालेश्वर
शर्मा, हेमनाथ यदु, मन्नूलाल यदु, भालचंद तैलंग, शंकर शेष,
नरेन्द्रदेव
वर्मा, रमेशचंद्र मल्होत्रा, पंडित द्वारिका प्रसाद तिवारी, लक्ष्मण
मस्तुरिया, उधोराम झकमार, कोदूराम दलित,
डा.डी.पी.देशमुख,
डा.दीनदयाल
साहू, मोहन लाल मानिकपन, आशा ध्रुव तथा प्रमुख कलाकारों में दाऊ
मंदराजी, महासिंह चंद्राकर, खुमान साव, कविता वासनिक,
निर्मला
ठाकुर, ममता चंद्राकर, कुलेश्वर ताम्रकर, लाला
राम कुमार सिंह, डा. पीसीलाल यादव, मिथलेश साहू,
तीजन
बाई, झाड़ू राम देवांगन, जाना बाई, ऋतु वर्मा,
मीना
बाई, दुखिया बाई, किस्मत बाई, सूरज बाई खांडे,
न्यायिक
दास मानिकपुरी, रेखा जलक्षत्री, बैतल राम साहू,
नवल
दास मानिकपुरी, पंच राम मिर्झा, दीपक चंद्राकर,
प्रभू
सिन्हा, अल्का चंद्राकर, छाया चंद्राकर, रजनी रजक,
उपासना
वैष्णव जैसे महान कलाकार शस्य श्यामला धरती की सेवा करते हुए छ.ग. के नाम को
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का सार्थक पहल किया है। ऐसे ही राजिम एवं अंचल के
सांस्कृतिक-साहित्यिक व धार्मिक धरोहर को सजाने व संवारने का उल्लेखनीय कार्य
जमींदार महाडिक परिवार के पूर्वजों व वंशजों द्वारा किया जाता रहा है जो वन्दनीय
है। ऐसे प्रयासों के लिए उस परिवार का नाम छ.ग.के इतिहास में जोड़ा जाना चाहिए।
सांस्कृतिक चेतना का अलख स्व. राघोबा राव के
पुत्र गुलाब राव और उनके पुत्र राजपत राव, रघुपत राव महाडिक द्वारा ब्रिटिश काल
एवं उसके बाद में क्षेत्र के बाड़ा ग्राम कौन्दकेरा, धौराभांटा, हसदा,
खिसोरा,
लोहरसी,
गडाघाट,
धुरसा
एवं फुलझर में खड़ी नाचा के कलाकारों द्वारा चिकारा तबला एवं हारमोनियम के माध्यम
से रात में न होकर दिन में ही नाचा का कार्यक्रम कराते थे। उस दौरान कलाकारों को
उचित पारिश्रामिक देकर सम्मान करते हुए रोजगार वर्ष भर देते रहे हैं। ऐसे अनुकरणीय पहल का
प्रतिफल के रूप में आज क्षेत्र के गांव-गांव से कलाकार उभरकर सामने आ रहे हैं। गुलाब राव महाडिक
कला प्रेमी होने के साथ-साथ कुशल हारमोनियम वादक गायक व शास्त्री संगीत और लय के
अच्छे ज्ञान रखते थे
उल्लेखनीय है कि महाडिक परिवार के वंशज राघोबा
राव व ललित राव महाडिक के कुशल निर्देशन एवं मार्गदर्शन में अंचल के विभिन्न
ग्रामों के साथ-साथ ग्राम फुलझर घटारानी में मानस गान सम्मेलन व सिरजन लोक कला एवं
साहित्य सम्मेलन का भव्य आयोजन 6 वर्षों से सफल
होते आ रहा है। यह कार्यक्रम उनके पिता स्व. रघुपत राव महाड़िक की स्मृति में होता
है जो यहां कि विशेष उपलब्धि व पहचान और गौरव के कारण महत्व रखता है।
धार्मिक-आध्यात्मिक उर्जा का संचार महाडिक
परिवार क्षेत्र के जमींदार होने के नाते अंचल के दैवीय स्थलों का दौरा कर राजिम के
विभिन्न
मंदिरों में पूजा विधान कराते हुए क्षेत्र में लगे मंदिरों का संरक्षण तथा पर्व
विशेष पर पूजा अर्चना करना अपना विशेष दायित्व मानते आ रहे हैं, जिसका
उदाहरण राजिम में कार्तिक पूर्णिमा अवसर पर स्नान-दान, मड़ई मेले
का आयोजन कराना प्रमुख है। साथ ही मां जतमई धाम का सनातन पूजा पाठ, ध्यान
साधना भी
महाडिक परिवार द्वारा आज भी संचालित होती है जो धर्म और आध्यात्म
क्षेत्र के लिए प्रेरणादायी है।
स्व. रघुपत राव महाडिक के कुशल निर्देशन में
समय-समय पर हिंदी नाटकों का मंचन राजिम व आसपास के गांवों में होता था। प्राय:
उनके द्वारा रचित नाटक आज भी काफी चर्चित है। इस परिवार का साहित्य
जगत में विशेष अभिरुचि होने के कारण आज राघोबा राव एवं ललित राव
जी महाडिक अनेक साहित्यिक संस्थाओं का संरक्षण कर रहे हं। विभिन्न क्षेत्रों में अपने अमूल्य योगदान के अलावा समाज के प्रति
सेवा हेतु तत्पर राघोबा राव महाडिक फिंगेश्वर जनपद पंचायत के अध्यक्ष रह कर सेवा
कर चुके है। राजिम नगर पंचायत से माता अंजना राव महाडिक नगर पंचायत का अध्यक्ष रह
कर सेवा दे चुके हैं। राजिम क्षेत्र की जनता ऐसे कार्यों के लिए महाडिक परिवार का
ह्रदय से आभारी
है।
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