लेख :
// अई...गजब मीठ लागिस हे मोला //
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हमर गाँव-देहात के असल सामाजिक सरूप हर जेन माध्यम ले नकल रूप मं दिखथय ; वो माध्यम आय - नाचा ।
नाचा ह तत्कालीन समाज के धारमिक , नैतिक , नियायिक , सैक्छिक अउ आरथिक बेवस्था ले बड़ा सुग्घर अवगत कराथय । नाचा लोकनाट्य परम्परा रूप मं ग्रामीन लोकजीवन सैली के सारवजनिक दरसन कराथय । साहित्यिक गद्य विधा के मुताबिक लोकनाट्य के रूप मं नाचा रात्रि मं ही आयोजित होथय । नाचा ह जम्मों नाट्य तत्व ले परीपूर्न होथय । पात्र-चित्रन तत्व के उचित महत्व अउ सारथक उपयोगिता ही नाचा ल सजीवता प्रदान करथय । चरित्र-चित्रन के अंतरगत पुरुस-पात्र ही नारी पात्र के रूप मं प्रस्तुत होवत नाचा ल जीवंत बनाय रखथय ; तभे तो नाचा के कथानक याने गम्मत प्रस्तुति के पहिली दो या तीन झन परी हर अपन गीत-नृत्य ले दरसक ल रिझावत नाचा के सुरू ले आखिरी तक एक सुग्घर ससक्त प्रस्तुति ल कायम रखथय ।
नाचा के मंच मं परी बने पुरुस पात्र हर सुग्घर-मनमोहक गीत गावत अउ नाचत दरसक मन के लोकरंजन करथँय । परी के गीत-नृत्य प्रस्तुति ले गदगद हो के कोनों दरसक हर दुरिहा ले हाथ ले ईशारा कर के , टार्च बार के ,माचिस काड़ी बार के , अउ नहिं ते सीटी मार के बलाथय ; तब मंच ले नाचत-गावत परी ह वो दरसक मेर जाथय । परी अउ दरसक के बीच हँसी-मजाक अउ गोठबात होथय । ताहन दरसक ह परी ल वोकर कला के सम्मान करत अउ अपन प्रसन्नता ब्यक्त करत पाँच-दस रूपिया देथय । दरसक ले परी ल देय ये कला प्रोतत्साहन रासि ल ही ' मोंजरा ' कहे जाथय । ताहन फेर वो परी हर मोंजरा ले के नाचत-ठुमकत मंच मं आथय ; वोकर आवत ले दिगर परी ह मंच मं नाचत रहिथय । फेर दूनों परी के बीच कुछ सारथक गोठबात ( संवाद ) होथय , जेमा लोकगीत घलो सामिल रथय । एक बानगी प्रस्तुत हे -
' अई....गजब मीठ लागिस हे मोला
टीकेश्वर भइया के गोठ या....
गब्दी के रहवइया ए बिचारा हा
अउ पास मं बला के मोला
दियीस हे ये दे दस के नोट या...' , मोंजरा लेवइया परी ह राग लमियाथै - ' मैं उसे पारटी की ओर से तहेदिल सुक्रिया अदा करती हूँ। '
' अउ...कुछू किहिस नइ हे या...' , दूसर परी ह संवाद ल आगू बढ़ाथय ।
' हाँ बहिनी किहिस हे या...बड़ मयारू भइया लागिस हे वो हा ...' , गोठबात के माध्यम ले ठेठ-देहाती भासा-सैली ले भूमिका बाँधथय , सँवारथय - ' किहिस... हे बिचारा ह मोला... बहिनी ये दुनिया मं ...मया-पिरीत अमोल होथय । भागमानी ल मय...परेम...मिलथय ' , काहत लोकगीत ल जोंड़ के गोठबात ल सटीक करत नाचा के प्रस्तुति ल सारथक बनाय के उदिम करथय -
' अई...मंगनी मा मांगे मया नइ मिलै रे
मंगनी मा....
फंदा रे फंदा...मया के फंदा...
देखे मा लोकलाज...पाय मा ठंडा....
मंगनी मा मांगे....' ।
अइसने ढंग ले मोंजरा लेय परी ह मंच मं सारथक गोठबात करत ग्रामीन लोकजीवन सैली ल अलाप मारत , मादक सायरी बोलत नाचा के आकरसन ल बनाय रखथय -
' सराब पीने से पहले , बोतल हिलाई जाती है ।
मोहब्बत करने से पहले , आँख मिलाई जाती है । '
ताहन मोंजरा देवइय्या दरसक कोती ईसारा करत वोकर बर अइसन ढंग के गीत गाथय -
' लागे रहिथे दिवाना तोरो बर
मोरो मया लागे रहिथे...
आमा लगाएच् ओरीच्-ओरी गा
जेमा रेंगै कनहइय्या का भइगे...
ये जाँवर-जोंड़ी बइहा...ये दिन...
लागे रहिथे दिवाना.... '
नाचा मं मोंजरा अउ मोंजरा लेवइय्या पात्र के खास महत्व होथय । मोंजरा लेवत परी के गीत-नृत्य प्रस्तुति नाचा के दरसकदीरघा ल आकरसित करत सब नाचा देखइया ल आमंत्रन पठोथय , संगे-संग जादा ले जादा मोंजरा लेवई-देवई हर एक अच्छा नाचा-प्रस्तुति अउ येकर ले नाचा के प्रति लोगन के रूचि झलकथय । येकर ले वाद्य पक्छ प्रस्तुति घलो निखरथय । मोंजरा लेवई- देवई हर एक अच्छा अउ साज -बाज के एक बढ़िया सूचक होथय । गम्मत प्रस्तुति ले पहिली मोंजरा लेवई ल बंद करे के ओखी करत दरसकदीरघा ल अइसन गोठबात अउ गीत ले रिझाथय -
' वो दे हर , जेन ह पूरा बाँही कुरता पहिरे हे अउ टोपी लगाय हे...हाव...उही हर जेन करिया चस्मा लगाय तौने ह मोला अबड़ मया करथय । मोला आवन नइ देवत रहिस हे , वोला मैं ले दे के मनाए हँव -
' मोला जावन देना रे अलबेला मोर
अबड़ बेरा होगे...मोला जावन देना...
आगी सुल्गाहूँ दीया बारे नइ हँव
रांधे बर चाऊँर घलो निमारे नइ हँव
हाय... निमारे नइ हँव रे...
अलबेला मोर...अबड़ बेरा होगे...। '
नाचा मं मोंजरा एक या दो परी ले सकेले पारिश्रमिक या मेहनताना होथय , पर ये रासि मं वोकर एकाधिकार नइ राहय , भलुक पूरा नाचापारटी के अधिकार होथय , अरथात् सकलाय रासि ल बस झन बराबर बाँटथय। मोंजरा के रकम ल सब नाचा कलाकार के कला प्रदरसन के उपलब्धि माने जाथय । ये सब कलाकार के सामूहिक कमाई होथय । मोंजरा के संबंध मं अहू बात देखे-सुने बर मिलथय कि पहिली तो सिरिफ मोंजरा के भरोसा नाचा कार्यकरम आयोजित होवय । बदलत समय के संग येकर सरूप घलो बदलगे । मोंजरा के संबंध मं एक अउ बात आथय कि कतको दरसक मन हर मोंजरा देय के ओखी मं मंच मं परी ल बलाके अनैतिक ढंग ले बेवहार करथँय । सराबखोरी के चलते दरसक मन ले नाचा कलाकार मन ल असामाजिक बेवहार के सामना करे ला परथँय । लोगन के अ इसन बेवहार ले नाचा जइसे हमर लोकप्रिय नाट्यपरम्परा के स्वच्छ छवि धुमिल होबे करथय , संगे-संग अइसन अनैतिक बेवहार ले असमाजिक करियापना उभरथय ; जौन हर मइनखेपना ल कलंकित करथय ।
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@ टीकेश्वर सिन्हा " गब्दीवाला "
घोटिया , बालोद.
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