घर बईठे कनो राजा नइ होय,
रोज जंग लडे़ ल पड़थे जी
दूनों हांथ के लकीर मा
रोज रंग भरे ल पड़थे जी
चुनौती संग लड़-लड़के
रोज पग धरे ल पड़थे जी
आन के आँसू पोंछे खातिर
अपन आँसू पिए ल पड़थे
अपन जिनगी अपन नाहीं
बस आन बर जिए ल पड़थे
नीत-नियाव पोथी गढे़ बर,
संसार ल पढे ल घलो पड़थे जी
अकास धरे आरती थारी,
सुरूज जोत ल बारे हे
सुवागत के सेज सजाहे,
चंदा-चंदेनी ल साजे हे
वो चम-चम मंजिल पाए बर,
बादर ल चीरे ल घलो पड़थे जी
रंग-बिरंग के तरंग सुघर,
अगोरत हाबे तोला
इतिहास चंदन करे बर,
जोहत हाबे तोला
शिव शंकर शंभू बने बर,
जहर ल पिये ल घलो पड़थे जी
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लोकनाथ साहू ललकार
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
मोबाइल-9981442332
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