कविता
कंधों पर भार
हे वंदनीय धरती मां
हम तो इतनी विनती करे
जीवन के रहते हमारा
अस्तित्व न रहे किसी के कंधों पर...।
धन्य हो जाए
हमारा यह जीवन
सह सकें थोड़ा भी
कोई भार अपने कधों पर
विश्व विशाल है यह आंगन
कोमल और कठोर के संगम में
थोड़ा सा भी भार तो सह सकें
हम अपने कधों पर
इस अमर राष्ट्र में लोकहित
हेतु कुछ करने का भार
हम सब मिलकर लें
अपने कंधों पर
राष्ट्रहित में अगर
चलानीं पड़े गोली भी तो
रखकर न चलानीं पड़े
दूसरे किसी के कंधों पर।
जीते जी न हम अगर
किसी को न दें सकें सहारा
अपने कंधों पर तो हम
बोझ भी न बनें किसी के कंधों पर
कंधों पर लेने की सार्थकता
तो पूरी होगी जब अवसान
हो तृप्त होगी हो जाएगा हमारी काया
को जब देंगे सहारा
लोग अपने कंधों पर
डा. दीनदयाल साहू
साहित्यकार व संपादक
पता-प्लाट न. 429 सड़क न.-07
माडल टाऊन नेहरु नगर भिलाई मो.-97523-61865
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