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कोरोना के बाप !
दगाबाजों के सरताज
आतंक के नकटे पक्षधर
खाता है कीड़े-मकोड़े अजर-गजर
दरअसल,
तेरा प्रतीक ही है घिनौना जानवर
जो कहीं नहीं है
वह उगल रहा है आग तेरे घर
जो केवल औरों की मिट्टी खाता है
और अपनों का खून पीता है
तू याद रख
तिरंगे में बसता है तेरा काल
नाम है, चक्र सुदर्शन
यही करेगा तेरा मर्दन !
हमने तुझे शांति कुंज बुद्ध दिया
पर तू लोभी !
तूने महामारी और युद्ध दिया
कोई तुझे सह भी ले
पर हम तुझे नहीं सहेंगे
तुझे बहुत घमंड है
अपने सन् बासठ पर
अरे ! वह तो कब का बीत चुका
तेरा पाखंड अब रीत चुका
क्या तू नहीं जानता
यह दो हजार बीस है
अब भारत अपने मामलों का
खुद न्यायाधीश है ।
हम शास्त्री के वंशज हैं
एक वक़्त की रोटी खा लेंगे
महाराणा हमारे रगों में हैं
घास की भी रोटी खा लेंगे
हमने तो मंदी में भी
अरबों की सैन्यशक्ति राफेल, सुखोई
धारण करना सीख लिया
शिवशंकर-सा जहर पीना सीख लिया
विवेकानंद के मार्ग पर चलकर
हमने कोशिशें बहुत की
मित्रता की पुरवाई बहती रहे
मधुरिम शहनाई बजती रहे
पर तू खुरापाती जन्मजात
शर्मसार किया मित्र जमात
क्या तुझे नहीं पता ?
महाराज शिवाजी ने
बिल्कुल तेरे ही जैसे
कपटी दगाबाज मित्र को कैसे ऐंठा ?
अरे, नीच !
हम भारतवंशी
हर सुख-सुविधा छोड़ देंगे, पर
तुझे तो नहीं छोड़ेंगे !!!
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जय हिन्द !
लोकनाथ साहू ललकार
दुर्ग-छत्तीसगढ़
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