माटी छत्तीसगढ़ ले नता गोता टोर के।
जावव झन तुमन खेती बारी छोड़ के।
परदेस म कोनो काखरो नई करे चिन्हारी।
लहुट के आहु फेर इही माटी के अंगना दुवारी।
दुख पाही तोर नोनी बाबू अऊ तोर सुवारी।
मुंहू मोड़ के परिया छोड़ झन कर अनचिन्हारी।
धान बो ले बरखा म अऊ बोबे फेर उन्हारी।
नांगर बइला धर ले अऊ संग म जुड़ा तुतारी।
बोता रोपा दोनो डार दे लगाबो आरी पारी।
बासी चटनी लेके आहि नोनी के महतारी।
नई डारन जहर हे सबके जिम्मेदारी।
गोबर खातू म करबो खेती दिही सोनहा बाली।
अऊ छलकत रही धान कटोरा नई होही खाली।
"दुलरवा" तोर कलम के लेखा ले बदलही आज नही ते काली।।
दुर्गेश सिन्हा "दुलरवा"
दुर्रे बंजारी (छुरिया)
राजनांदगांव
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