सदियों से उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर में मिलने वाला महाप्रसाद
करीब 600-700 रसोइयों द्वारा बनाया जाता है, जिसे करीब 50
हजार श्रद्धालुओं में बांटा जाता है। यह महाप्रसाद आनंदा बाजार में
मंदिर के अंदर ही तैयार किया जाता है, जो विश्व में मौजूद सबसे
बड़ा खुली हवा में बना भोजनालय है। श्रद्धालु सिर्फ इस महाप्रसाद
को खा ही नहीं सकते, बल्कि खरीद भी सकते हैं। मंदिर रसोइया
अध्यक्ष दामोदर महास्वर के अनुसार औसतन रोज करीब 20 हजार
लोगों के लिए महाप्रसाद बनाते हैं। वहीं, त्योहारों के समय में 50
हजार लोगों के लिए यह महाप्रसाद तैयार किया जाता है।
लकड़ी के चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में यह महाप्रसाद बनाया जाता है।
मंदिर समिति के अनुसार करीब 40 से 50 क्विंटल चावल और 20
क्विंटल दाल समेत सब्जियों के इस्तेमाल से रोज यह महाप्रसाद
बनाया जाता है, जिसे काफी सस्ते दाम में बेचा जाता है। यह
महाप्रसाद सभी श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध होता है। एक कुडुआ
(एक तरह का मिट्टी का बर्तन) की कीमत 50 रुपये में शुरू होती है,
जिसमें चावल, तरह-तरह की दाल और सब्जियां होती हैं। एक दिन
में इस महाप्रसाद की बिक्री से करीब 8-10 लाख रुपये की आमदनी
होती है। भाप में पके इस महाप्रसाद को पहले भगवान जगन्नाथ
को भोग लगाया जाता जाता है, इसके बाद देवी बिमला को अर्पण
किया जाता है।
मिक्स चावल और नमक के साथ मीठी दाल, प्लेन मिक्स दाल,
सब्जी, तरह-तरह की करी, सागा भाजा (पालक फ्राई) और दलिया
होता है। नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद यहां
विशेष रूप से मिलता है। महाप्रसाद दो तरह का होता हैं-सूखा और
गीला। आनंद बाजार में बेहद कम दाम में बिक्री के लिए उपलब्ध
इस महाप्रसाद का स्वाद लेना भक्त पसंद करते हैं। विशेष बात यह
भी है कि कच्ची हरी मिर्च, पीली मिर्च, लाल मिर्च के साथ हर बार
सलाद में लगभग काले रंग की मिर्च अवश्य मिलती है।
और धागे से सिले हुए निर्मल्य में चावल के दाने होते है। ऐसी
मान्यता है कि इस निर्मल्य को घर के भंडार गृह, पूजा गृह और
तिजोरी में रखना बेहद शुभ होता है और इससे अमुक घर में धन-
धान्य की हमेशा वृद्धि होती है। पुरी के इस महारसोई के बारे में भी
यही कहा जाता है कि यहां का भंडार कभी खाली नहीं होता। जबकि
यह महाप्रसाद रोजाना लाख से भी ज्यादा भक्त ग्रहण करते हैं।
श्रद्धालु इस महाप्रसाद को अपने घर के लिए सामाजिक कार्य या
शादी में मेहमानों को परोसने के लिए खरीद भी सकते हैं। जिसे
काफी सस्ते दाम में बेचा जाता है।
बदलते परिवेश का असर इस मंदिर में भी होने लगा है। पुरी में
श्रीजगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद की ऑनलाइन बिक्री के विज्ञापन
पर बवाल मच गया है। पुरी भोग डॉट कॉम नाम से महाप्रसाद बेचे
जाने का विज्ञापन इन दिनों चर्चा में है। इसके खिलाफ कुछ
श्रद्धालुओं ने सिंहद्वार थाने में शिकायत दर्ज कराई है। यह मामला
सामने के बाद श्रीमंदिर प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि किसी को
भी महाप्रसाद ऑनलाइन बेचने की अनुमति नहीं दी गई है।
श्रीमंदिर के जनसंपर्क अधिकारी लक्ष्मीधर पंडा ने कहा है कि
विज्ञापन करने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ आवश्यक
कार्रवाई की जाएगी। उल्लेखनीय है कि पुरी आने वाले श्रद्धालु
श्रीमंदिर में मिलने वाले महाप्रभु के महाप्रसाद के लिए उत्सुक रहते
हैं। महाप्रसाद की बिक्री को व्यवस्थित करने के लिए श्रीमंदिर
प्रशासन ने आश्वासन देते हुए पिछले दिनों इसकी दर निर्धारित
करने का निर्णय लिया है।
छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए यह नजदीकी तीर्थ स्थल होता है इसी
कारण अधिकांश संख्या में हर वर्ष प्रभु के दर्शन के लिए यहां
पहुंचते रहते हैं। यहां के महाप्रसाद की हमारे छत्तीसगढ़ में इसकी
महत्ता बहुत अधिक होती है। मितान बदने की कड़ी में महाप्रसाद
भी बदना किया जाता है। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की संस्कृति भी
काफी मिलती-जुलती है इस कारण इन दोनों राज्यों की संस्किृत का
आपस में आदान-प्रदान भी होता रहता है। इस वर्ष लाकडाऊन की
वजह से भक्तों का छत्तीसगढ़ से नहीं के बराबर जाना हुआ, लेकिन
आनलाइन दर्शन का लाभ दर्शन भक्तों ने जरूर लिया। हमारी
छत्तीसगढ़ की संस्कृति का अच्छा उदाहरण भगवान जगन्नाथ के
इस मंदिर से उल्लेखित किया जा सकता है। यही कारण है कि
भगवान जगन्नाथ के प्राचीन मंदिर भी छत्तीसगढ़ में विद्यमान है।
ऐसी ही संस्कृति को आगे लाने का काम हमारी लोक कला दर्पण
से आगे लाने का बीड़ा हमारी टीम ने उठाया है, आप सभी इसमें
सहभागी बनें...।
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