**कविता**
बुलंदी पर है अभी बादल,
के सावन का महीना है।
कही घनघोर, सराबोर,
कही मूसलाधार बरसना है।।
लुका छिपी खेले दिनकर,
रैना चाँद न दिखता है।
तमस ही है तमस निशा,
पसारे हाथ न दिखता है।।
वसुधा भी लगे प्यारी,
हरे रंग की साड़ी मे।
तरंगिणी भी बहे अपने,
भरपूर जवानी मे
दादुर भी करे टर्रटर्र,
और सोनकिरवा का जलना है
बुलंदी पर है अभी बादल...... बरसना
पीली पीली फूले है,
संध्या को तरोई।
पुरी हो गई होती है,
खेती की निंदाई ।।
के बहते बरसाती नाली पर
छोटी मछली का पकड़ना है
बुलंदी पर है अभी बादल
के सावन का महीना है ......
मूसलाधार बरसना है।।
**सुखनन्दन कोल्हापुरे शरारत ** रायपुर (छ. ग.)
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